खुदरा कारोबार में क्रांति

The Retail Revolution

खुदरा कारोबार में क्रांति

भारत में 1893 से 1930 के बीच, गाड़ी चलाने वाले लोग ईंधन भरने के लिए ‘ड्रम और माप’ तरीका इस्तेमाल करते थे। पेट्रोल बड़े स्टील के ड्रम में रखा जाता था और उसे गुरुत्वाकर्षण की मदद से गैलन के डिब्बों में डाला जाता था। फिर इन डिब्बों से फ़नल के जरिए सीधे गाड़ियों के टैंकों में भरा जाता था।

supplied with kerosene

उद्देश्य कंपनी ने यह चुनौती भी स्वीकार की कि दूर-दराज़ के गाँवों तक पहुँचकर हर घर को केरोसीन उपलब्ध कराया जाए। इसके लिए, रोशनी और खाना पकाने के लिए असरदार केरोसीन उपकरणों का विकास और प्रचार करना कंपनी की बिक्री गतिविधियों का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। इससे एक आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव आया – बेहतर रोशनी से फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर रात तक काम कर सकते थे, जिससे उत्पादकता बढ़ी। बेहतर रोशनी का मतलब यह भी था कि सार्वजनिक जगहें ज्यादा समय तक खुली रह सकती थीं, जिससे दुकानों तक ग्राहकों की पहुँच आसान हुई।

ये तस्वीरें 1920 के दशक के हमारे केरोसीन एजेंसियों की हैं।

the first visible pump

1928 तक पहला दिखने वाला पंप (विज़िबल पंप) लाया गया। इस पंप में एक बड़ा ग्लास सिलेंडर जुड़ा होता था, जिससे ग्राहक देख सकता था कि वह कितना ईंधन खरीद रहा है। यह सिलेंडर पुराने पंपों में भी जोड़ा गया। बाद में इस ग्लास सिलेंडर की जगह क्लॉक-स्टाइल मीटर ने ले ली, जो 1930 के दशक के शुरुआती गैस पंपों की मुख्य विशेषता बन गया।

first-ever drive-in service station

भारत का पहला ड्राइव-इन सर्विस स्टेशन 1928 में मुंबई में बनाया गया। यह M/s. JB Patel & Co का था। साउथ मुंबई की लैमिंगटन रोड पर लगा यह कर्बसाइड पंप भारत पेट्रोलियम का सबसे पुराना फ्यूल स्टेशन था, जिसमें ईंधन भरने की मशीन लगी थी।

इस कंपनी के वरिष्ठ सदस्य जहांगिर बापूजी पटेल स्थानीय रूप से बहुत लोकप्रिय और प्रसिद्ध थे। उन्हें इस बात पर गर्व था कि उन्होंने भारत में फ्यूल रिटेलिंग की शुरुआत की।

बाद में इस फ्यूल स्टेशन को रणनीतिक रूप से साउथ मुंबई के ऑपेरा हाउस के पास, चारनी रोड ईस्ट में स्थानांतरित कर दिया गया।

Fort Wayne

1885 में अमेरिका के इंडियाना राज्य के फोर्ट वेन शहर में, केरोसीन पंप के आविष्कारक एस.एफ. बोउज़र ने अपनी नई बनाई मशीन एक किराने की दुकान के मालिक को बेची। यह पंप इसलिए बनाया गया था ताकि दुकानदार जलने वाले तरल (केरोसीन) को किसी भी बर्तन में हाथ से भरने की परेशानी और खतरे से बच सके।

उस समय यह पंप सिर्फ केरोसीन भरने के लिए था, जिसे चूल्हे और दीयों में जलाया जाता था। उस दौर में पेट्रोल (गैसोलीन) को बेकार समझा जाता था, क्योंकि यह सिर्फ केरोसीन निकालने की प्रक्रिया का बचा हुआ हिस्सा था। उस समय तक गाड़ियाँ भी बनी नहीं थीं और न ही बाजार में आई थीं।

बोउज़र का यह आविष्कार, जो सुरक्षित तरीके से सही मात्रा में केरोसीन भरता था, लगभग 50 साल तक बहुत काम आया। बाद में इसी से मीटर वाला पेट्रोल पंप विकसित हुआ।

1928 से 1935 के बीच शुरुआती पंप इंसानों द्वारा चलाए जाते थे। इनमें सक्शन पंप लगाया जाता था, जिसे हाथ से लीवर चलाकर ऑपरेट किया जाता था। यह इस्तेमाल करने में आसान और सुरक्षित था, और उस समय इसे एक बड़ी नई खोज माना गया।

mechanics of the pumps

यही वह समय था जब पंप की मशीनों को कैबिनेट में ढककर डिस्पेंसिंग यूनिट बनाई गईं और पंप पर कंपनी के लोगो दिखने लगे – कभी सीधे कैबिनेट पर और कभी पंप के ऊपर बने गोल चिन्ह पर।

motors of dispensing

1945 तक पेट्रोल भरने की मशीनों (डिस्पेंसिंग यूनिट) के मोटर बिजली से चलने लगे। इससे उनका इस्तेमाल आसान और तेज़ हो गया। इनमें मैकेनिकल डिस्प्ले भी लगाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद कारें पहले से नीची बनने लगीं। इससे गाड़ी से मीटर देखना मुश्किल हो गया। इस समस्या को दूर करने के लिए छोटे और नीची ऊँचाई वाले पंप बनाए गए, जिन्हें लो-प्रोफाइल पंप कहा गया। इन पंपों का डिज़ाइन साधारण था, इनमें गोल किनारे, स्टेनलेस स्टील की सजावट और बड़े मीटर लगे थे।

1989 में L&T Z-line पंप आए। इनसे पेट्रोल पंप की छवि आधुनिक हो गई। इनकी देखभाल आसान थी और इनका डिस्प्ले पैनल गाड़ियों से साफ़ और सही कोण पर दिखता था। यह पंप एक साथ ईंधन की मात्रा (लीटर में), उसकी कीमत और दर भी दिखाते थे।

the Multi Dispensing Unit

2001 तक भारत में मल्टी डिस्पेंसिंग यूनिट (MDU) आ गई। नाम से ही समझ आता है कि इससे एक ही पंप से कई तरह के ईंधन दिए जा सकते हैं। इससे जगह बचती थी और ग्राहकों को भी आसानी होती थी, क्योंकि अब वे किसी भी पंप पर गाड़ी ले जाकर ईंधन भरवा सकते थे। इसमें सभी उत्पादों की कीमत और मात्रा एक ही डिस्प्ले पर सफेद बैकलाइट के साथ दिखाई जाती थी। इसमें दोनों तरफ से ईंधन भरने की सुविधा भी थी।

इसे सबमर्सिबल पंप के साथ भी चलाया जा सकता था। आज भी ये पंप इस्तेमाल होते हैं, जिन्हें आप अपनी गाड़ी में ईंधन भरवाते समय देख सकते हैं।

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